
सिद्ध चौपाइयाँ प्रत्येक दिन सुनने से हमारा मन शांत होता है। पूरे दिन की ऊर्जा मिलती है। भागदौड़ भरी ज़िंदगी में 20 मिनट प्रभु में ज़रूर लगाएं। आपके सभी संकट, दुख, दर्द प्रभु श्री राम हर लेते हैं।
सिय राम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरी जुग पानी।
“सिय राम मय सब जग जानी” इसका अर्थ है कि सभी जगह सिया और राम ही हैं, अर्थात् ईश्वर का साकार रूप और उसकी पत्नी सीता का रूप सभी जगह में व्याप्त हैं।
“करहु प्रणाम जोरी जुग पानी” इसका अर्थ है कि हम सबको भगवान का प्रणाम करना चाहिए और जगत को प्रेम और शांति से भर देना चाहिए।
श्रीराम सबके अंदर समाहित हैं। श्रीराम का स्वरूप ही प्रेम, करुणा, न्याय और दया है। जो व्यक्ति इन गुणों से परिपूर्ण है, उसमें श्रीराम का वास है।

यह श्लोक भक्ति और प्रेम की भावना को व्यक्त करने के लिए है और यह बताता है कि भगवान राम हम सभी के जीवन में सर्वत्र विद्यमान हैं। इस चौपाई में तुलसीदास जी कहते हैं कि समस्त संसार में श्रीराम का निवास है। सभी प्राणियों में भगवान का वास है। हमें सभी को हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए।
यह प्रणाम सिर्फ एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह एक भाव है। जब हम किसी को प्रणाम करते हैं, तो हम उसके प्रति अपना सम्मान और आदर प्रकट करते हैं।
तुलसीदास जी इस चौपाई के माध्यम से हमें यह संदेश देते हैं कि हमें सभी को समान दृष्टि से देखना चाहिए। हमें किसी के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। सभी प्राणियों में भगवान का वास है, इसलिए हमें सभी को सम्मान देना चाहिए।
Siddh Choupaiyan · Suresh Wadekar · Seema Mishra · Ramlal Mathur · Tulasi Das Siddh Choupaiyan ℗ Veena Music https://www.youtube.com/watch?v=I4Z77Y0Mi24
मंगल भवन अमंगल हारी, द्रबहु सुदसरथ अचर बिहारी।
इस चौपाई में तुलसीदास जी भगवान राम की स्तुति करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान राम मंगलकारी हैं। वे सभी प्रकार के अमंगलों को दूर करते हैं। वे अचल हैं, अर्थात् वे कभी भी नष्ट नहीं होते हैं।
“मंगल भवन अमंगल हारी” का अर्थ है कि भगवान राम का निवास मंगलकारी है। वे सभी प्रकार के अमंगलों को दूर करते हैं। अमंगल से तात्पर्य है, बुराई, दुख, कष्ट, विपत्ति आदि। भगवान राम सभी प्रकार के बुराईयों को दूर करके हमारे जीवन में सुख और शांति का वास करते हैं।
“द्रबहु सुदसरथ अचर बिहारी” का अर्थ है कि हे सुदसरथ! हे अचल बिहारी! आप द्रविए, अर्थात् प्रसन्न होइए। भगवान राम के नाम “सुदसरथ” का अर्थ है, “सुंदर सरथ” अर्थात् सुंदर रथ वाला। भगवान राम का रथ बहुत ही सुंदर है। उनका रथ स्वर्ण से बना हुआ है। भगवान राम उस रथ पर विराजमान होकर सभी प्रकार के कष्टों को दूर करते हैं।
तुलसीदास जी इस चौपाई के माध्यम से हमें यह संदेश देते हैं कि हमें भगवान राम की शरण में जाना चाहिए। भगवान राम हमारे सभी दुखों और कष्टों को दूर करेंगे। वे हमें सुख और शांति प्रदान करेंगे।
इस चौपाई से प्रेरणा लेकर हम अपने जीवन में निम्नलिखित बातें कर सकते हैं:
- हमें भगवान राम की भक्ति में मन लगाना चाहिए।
- हमें भगवान राम के नाम का जाप करना चाहिए।
- हमें भगवान राम के गुणों का ध्यान करना चाहिए।
यदि हम इन बातों को अपने जीवन में उतारेंगे, तो हम भगवान राम की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

दीन दयाल बिरिदु संभारी, हरहु नाथ मम संकट भारी।
यह चौपाई श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड की है। सीता माता द्वारा हनुमान जी को श्रीराम के पास संदेश देने के लिए भेजे जाने पर यह चौपाई बोली थीं।
दीन दयाल का अर्थ है, दीन-दुखियों पर दया करने वाले। बिरिदु संभारी का अर्थ है, दुखों को हरने वाले। हरहु नाथ मम संकट भारी का अर्थ है, हे नाथ, मेरे भारी संकट को हर लीजिए।
इस चौपाई में सीता माता श्रीराम से प्रार्थना कर रही हैं कि वे दीन-दुखियों पर दया करने वाले और दुखों को हरने वाले हैं। इसलिए, वे उनके भारी संकट को भी हर लें।
यह चौपाई हिंदू धर्म में बहुत लोकप्रिय है। इसे अक्सर संकटों से मुक्ति के लिए प्रार्थना के रूप में पढ़ा जाता है।
इस चौपाई का अर्थ और महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- यह चौपाई हमें भगवान की दयालुता और शक्ति की याद दिलाती है।
- यह हमें सिखाती है कि हमें अपने संकटों से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि भगवान की शरण लेनी चाहिए।
- यह हमें विश्वास दिलाता है कि भगवान हमारे संकटों को दूर कर सकते हैं।
अगर आप किसी संकट से गुजर रहे हैं, तो इस चौपाई का पाठ करना आपके लिए एक अच्छा उपाय हो सकता है। यह आपको शांति और आशा दे सकता है।
सीता राम चरन रति मोरे, अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे।
अर्थ:
- सीता राम चरन रति मोरे: मेरे लिए राम और सीता के चरण ही आनंद का स्रोत हैं।
- अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे: हे राम, आपका मुझ पर अनुग्रह दिन-प्रतिदिन बढ़ता रहे।
व्याख्या:
यह पंक्ति रामायण के सुंदरकांड से है। यह भरत द्वारा गाई गई है, जो राम के छोटे भाई हैं। इस पंक्ति में भरत की राम और सीता के प्रति गहरी भक्ति और प्रेम व्यक्त होता है। भरत राम और सीता के चरणों में अपना सर्वस्व अर्पण कर देते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे उनका अनुग्रह और आशीर्वाद दिन-प्रतिदिन बढ़ाते रहें।
इस पंक्ति के कुछ अन्य अर्थ और व्याख्याएं इस प्रकार हैं:
- विनम्रता और स्वीकृति: भरत राजा के उत्तराधिकारी होने के बावजूद, वे राम को सिंहासन सौंप देते हैं और उनके वनवास को स्वीकार करते हैं। यह पंक्ति उनकी विनम्रता और राम की इच्छा स्वीकार करने की भावना को दर्शाती है।
- निश्छल प्रेम: राम के वनवास के दौरान भरत के सामने कई चुनौतियाँ आईं, लेकिन उनका प्रेम और भक्ति कभी नहीं बदली। यह निश्छल प्रेम की शक्ति को उजागर करता है।
- भक्ति का महत्व: चरणों पर ध्यान केंद्रित करना गहरी श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है। यह पंक्ति भक्ति और दिव्य प्राणियों में विश्वास के महत्व पर बल देती है।
कुल मिलाकर, यह पंक्ति भरत की राम और सीता के प्रति गहरी प्रेम और निष्ठा को दर्शाती है। यह भक्ति और अटूट विश्वास की असीम शक्ति की याद दिलाती है।
अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँती, सब तजि भजनु करौं दिन राती।।
अर्थ:
- अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँती: हे प्रभु, अब इस प्रकार कृपा करो कि,
- सब तजि भजनु करौं दिन राती।।: मैं सब कुछ त्यागकर दिन-रात आपका भजन करूं।
व्याख्या:
यह पंक्ति रामचरितमानस के किष्किंधा कांड से है। यह सुग्रीव द्वारा भगवान राम से कही गई है। सुग्रीव भगवान राम से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि वे चाहते हैं कि भगवान राम उनकी ऐसी कृपा करें कि वे सब कुछ त्यागकर दिन-रात उनका भजन करें।
इस पंक्ति में सुग्रीव की भगवान राम के प्रति गहरी भक्ति और प्रेम व्यक्त होता है। सुग्रीव भगवान राम को अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए तैयार हैं। वे चाहते हैं कि वे भगवान राम के भजन में अपना जीवन व्यतीत करें।
इस पंक्ति से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हमें भी भगवान राम के प्रति गहरी भक्ति और प्रेम रखनी चाहिए। हमें चाहिए कि हम सब कुछ त्यागकर भगवान राम का भजन करें।
इस पंक्ति को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
- भक्ति का महत्व: सुग्रीव की भक्ति और प्रेम हमें भक्ति के महत्व की याद दिलाती है।
- भगवान् राम की कृपा: भगवान राम की कृपा से सब कुछ संभव है।
- भजन का महत्व: भजन से हमें मोक्ष प्राप्ति होती है।
मंगल मूर्ति मारुती नंदन । सकल अमंगल मूल निकंदन।।
अर्थ:
- मंगल मूर्ति: मंगलकारी मूर्ति,
- मारुती नंदन: हनुमान जी के पुत्र,
- सकल अमंगल मूल निकंदन: समस्त अमंगलों के मूल का नाश करने वाले।
व्याख्या:
यह पंक्ति हनुमान जी की स्तुति में कही गई है। इस पंक्ति में हनुमान जी को मंगलकारी, हनुमान जी के पुत्र और समस्त अमंगलों के मूल का नाश करने वाले बताया गया है।
हनुमान जी को मंगलकारी माना जाता है। वे हमेशा भक्तों के कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं। वे सभी प्रकार के संकटों को दूर करते हैं।
हनुमान जी को राम जी के पुत्र भी माना जाता है। वे राम जी के अनन्य भक्त हैं। वे राम जी की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।

हनुमान जी को समस्त अमंगलों के मूल का नाश करने वाला माना जाता है। वे सभी प्रकार के बुरे प्रभावों को दूर करते हैं। वे भक्तों को सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं।
इस पंक्ति से हमें हनुमान जी की शक्ति और महिमा का पता चलता है। हमें हनुमान जी की भक्ति करने से लाभ होता है।
यह पंक्ति अक्सर हनुमान जी की पूजा के समय बोली जाती है। यह पंक्ति हनुमान जी के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।

Dr. Amit is a seasoned IT leader with over two decades of international IT experience. He is a published researcher in Conversational AI and chatbot architectures (Springer & IJAET), with a PhD in Generative AI focused on human-like intelligent systems.
Amit believes there is vast potential for authentic expression within the tech industry. He enjoys sharing knowledge and coding, with interests spanning cutting-edge technologies, leadership, Agile Project Management, DevOps, Cloud Computing, Artificial Intelligence, and neural networks. He previously earned top honors in his MCA.