
रिपोर्ट from : LegendNews.in – 6 minutes read time. Dated 20 July 2025
पृथ्वी की गतिशील सतह का अभूतपूर्व दृश्य दिखाएगा नया उपग्रह NISAR
भारत और अमेरिका मिलकर पृथ्वी की सतह का अब तक का सबसे बारीकी से अवलोकन करने वाला उपग्रह (space satellite) लॉन्च करने जा रहे हैं। इसका नाम है NISAR। इसे भारत के आंध्र प्रदेश के तट पर स्थित श्रीहरिकोटा उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र से आगामी 30 जुलाई को इसरो के GSLV-F16 द्वारा लॉन्च किया जाएगा।
यह उपग्रह पृथ्वी की सतह [the ground we walk on] को बेहद बारीकी से देखेगा – जैसे कि भूकंप से धरती कैसे हिलती है, तूफान किन जगहों पर बाढ़ लाते हैं, और बर्फ के पहाड़ कैसे पिघलते हैं।
नासा और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का एक संयुक्त मिशन पृथ्वी के निरंतर बदलते परिदृश्य को समझने के हमारे तरीके में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला है। नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR), जो 26 जुलाई को भारत से प्रक्षेपण के लिए प्रस्तावित है, अब तक तैनात किए गए सबसे बड़े रडार उपग्रहों में से एक होगा, जो पृथ्वी के भूभाग, बर्फ की चादरों और वनस्पति का विस्तृत और समग्र दृश्य प्रदान करेगा।
यह उपग्रह बहुत महंगा है– इसकी लागत लगभग 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग 12,300 करोड़ रुपये) है। यह अब तक के सबसे बड़े रडार उपग्रहों में से एक होगा। रडार तकनीक के ज़रिए यह उपग्रह रेडियो तरंगें [radio waves – जैसी कि Wi-Fi में होती हैं] भेजकर ज़मीन, पहाड़, बर्फ या पेड़-पौधों के नीचे भी होने वाले बदलावों को देख सकेगा, चाहे बादल हों या रात हो।
पृथ्वी प्रक्रियाओं को समझने के लिए शक्तिशाली उपकरण, धरती की हरकतों को रिकॉर्ड करेगा
NISAR, पृथ्वी की सतह पर होने वाले बदलावों को रिकॉर्ड करने में मदद करेगा। यह लगभग 747 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में रहेगा और हर 12 दिनों में पृथ्वी के अधिकांश हिस्सों को देख सकेगा। इसकी खास बात यह है कि यह बहुत ही छोटी-छोटी चीज़ों (10 मीटर से भी कम) और भूमिगत हलचल (महज 1 सेंटीमीटर) को भी पहचान सकता है।
NISAR सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) तकनीक का उपयोग करता है, जो उपग्रह की गति के दौरान मिले कई संकेतों को जोड़कर, उसकी भौतिक डिश से कई गुना बड़ा एंटीना मानो बना देता है। इससे 10 मीटर से कम के रिजॉल्यूशन पर मानचित्रण और 1 सेंटीमीटर जितने हल्के भू-गति को भी पहचानना संभव हो जाता है।
NISAR पहला उपग्रह होगा जो एक साथ दो अलग-अलग वेवलेंग्थ पर काम करता है
L-बैंड रडार (24 सेमी, NASA द्वारा): घनी वनस्पति को भेदकर सतह में हुए बदलावों को दिखाता है, विशेषकर इंडोनेशिया और पैसिफिक नॉर्थवेस्ट जैसे क्षेत्रों में भूकंप पर नजर रखने के लिए।
S-बैंड रडार (9 सेमी, ISRO द्वारा): वनस्पति की विशेषताओं को और अच्छे से दर्शाता है, जिससे खेती की भूमि की मैपिंग और तटीय जल के पैटर्न का विश्लेषण आसान होता है।
किस काम आएगा?
भूकंप का पता लगाना: यह उपग्रह घने जंगलों में भी, जहां सतह का बदलाव नहीं दिखता, वहां भी भूकंप से आई हलचल को देख सकता है।
बर्फ पिघलना: यह दिखाएगा कि आर्कटिक या अन्य हिम क्षेत्रों में बर्फ की चादरें कैसे पिघल रही हैं और इसका पर्यावरण पर क्या असर हो रहा है।
खेती की जानकारी: खेतों में मिट्टी की नमी को मापकर किसानों को सिंचाई, सूखा, और बाढ़ का आकलन करने में मदद करेगा, जिससे बेहतर फसल उगाई जा सकेगी।
पानी का स्तर: यह समुद्र या तटीय क्षेत्रों में पानी की गहराई भी माप सकता है, जिससे बाढ़ जैसी आपदाओं की जानकारी मिल सकती है।
पर्माफ्रॉस्ट की निगरानी: यह उस ज़मीन का भी हाल बताएगा जो सालों-साल जमी रहती है (पर्माफ्रॉस्ट) और जलवायु परिवर्तन के कारण कितनी तेज़ी से पिघल रही है।
पर्माफ्रॉस्ट: क्या है, और क्यों है महत्वपूर्ण
पर्माफ्रॉस्ट ऐसी ज़मीन है जो लगातार दो साल या उससे ज्यादा समय तक 0°C या इससे नीचे की तापमान में जमी रहती है। यह आमतौर पर आर्कटिक, पर्वतीय इलाकों और उत्तरी गोलार्ध के लगभग एक चौथाई हिस्से में पाई जाती है। पघलने पर पर्माफ्रॉस्ट ग्रीनहाउस गैसें (कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन) छोड़ता है, जो जलवायु परिवर्तन और निर्माण कार्यों के लिए जोखिम हो सकता है।पर्माफ्रॉस्ट में बहुत सारा जैविक कार्बन जमा होता है, जो पिघलने पर वातावरण को और गर्म बना सकता है, जिससे जलवायु परिवर्तन और तेज़ हो सकता है।
NISAR के ज़रिए पहली बार वैज्ञानिक इतने बड़े स्तर पर पर्माफ्रॉस्ट में होने वाले बदलाव — जैसे कि बर्फ पिघलने, ज़मीन धंसने या ऊपर उठने — की नियमित और सटीक निगरानी कर पाएंगे। इससे न सिर्फ पर्यावरण और जलवायु विज्ञान में, बल्कि बुनियादी ढांचे (जैसे सड़कें, इमारतें) की सुरक्षा और योजना में भी मदद मिलेगी।
पर्माफ्रॉस्ट अनुसंधान में NISAR की भूमिका
NISAR पर्माफ्रॉस्ट की निगरानी करेगा-
बार-बार और सटीक रूप से भूमि की गति मापेगा (धंसना, उभरना), पूरे पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र में।
सतह में हुए बदलावों का नक्शा बनाएगा, जिससे अस्थिरता के क्षेत्रों और पारिस्थितिकी पर खतरे की भविष्यवाणी हो सकेगी।
जलवायु मॉडलिंग में मदद— पिघलन की दर और संबंधित कार्बन उत्सर्जन का आकलन करेगा।
यह रडार-आधारित, हर मौसम और हर समय की निगरानी, बुनियादी ढांचे, जलवायु अनुसंधान और अनुकूलन रणनीतियों में महत्वपूर्ण और प्रायोगिक जानकारी उपलब्ध कराएगी।
वैश्विक प्रभाव वाला साझेदारी प्रयास
NISAR अमेरिकी-भारतीय सहयोग को और सुदृढ़ बनाता है। उपग्रह का संयुक्त निर्माण, जिसमें प्रक्षेपण वाहन ISRO द्वारा और विशेष उपकरण NASA द्वारा दिये गए हैं, इस सहयोगी मिशन को ऐतिहासिक बनाता है।
NISAR की जानकारी को गुरुत्वाकर्षण मापों के साथ जोड़कर वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं— भूमिगत जल-स्तर का उच्च-संकल्प नक्शा, जो सतत जल संसाधन प्रबंधन में सहायक होगा। तीन वर्षों में NASA के पृथ्वी विज्ञान अभिलेखागार में 140 पेटाबाइट तक की बढ़ोतरी, जो विविध विषयों में अनुसंधान के नए रास्ते खोलेगा।
भारत और अमेरिका का सहयोग
यह मिशन भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती साझेदारी का प्रतीक है। उपग्रह के निर्माण में दोनों देशों के वैज्ञानिकों ने मिलकर काम किया है — NASA ने L-बैंड रडार सिस्टम तैयार किया, जबकि ISRO ने S-बैंड रडार व प्रक्षेपण यान दिया। इस उपग्रह को भारत के श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया जाएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि NISAR से मिली जानकारी को अगर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण डाटा के साथ जोड़ा जाए तो जमीन के नीचे के पानी और उसके ज्यादा-या-कम होने के नक्शे भी बहुत सटीकता से बनाए जा सकते हैं। इससे जल-संसाधन प्रबंधन, कृषि, आपदा प्रबंधन, और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद मिलेगी।
“यह मिशन पृथ्वी की गतिशील प्रक्रियाओं की निगरानी में एक बड़ी छलांग है,” कहती हैं अंतरिक्ष नीति विशेषज्ञ नम्रता गोस्वामी। “NASA और ISRO का यह सहयोग दर्शाता है कि विज्ञान में अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी कितनी महत्वपूर्ण है।”
NISAR उपग्रह, पृथ्वी को समझने और उसकी रक्षा में एक बहुत बड़ी मदद साबित होगा। इसकी वजह से हम धरती पर आने वाले बदलाव — चाहे वह भूकंप हों, फसल हो, पानी की कमी या ज्यादा हो, पर्माफ्रॉस्ट हो या बर्फ पिघलना — सभी को सटीक, त्वरित और विस्तृत जानकारी के साथ देख और समझ सकेंगे, और भविष्य की रक्षा के लिए ठोस कदम उठा सकेंगे।
NISAR के वैश्विक, उच्च-रिजॉल्यूशन और त्वरित रडार अवलोकन पृथ्वी विज्ञान— चाहे वह पर्माफ्रॉस्ट हो, प्राकृतिक खतरे, कृषि या जल प्रबंधन—सभी क्षेत्रों में अनुसंधान और प्रायोगिक निर्णयों के लिए नई क्रांति लाएंगे।
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अमित एक अनुभवी आईटी अन्वेषक और सत्य के खोजी हैं। उन्होंने लिखने का माध्यम इसलिए चुना है ताकि आम लोगों तक अपने अनुभव साझा कर सकें।