
Nectar of wisdom !
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ,जो जस करहि सो तस फल चाखा
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित इस चौपाई का भावार्थ है कि यह विश्व या जगत कर्म प्रधान है. इसका मतलब है कि हर व्यक्ति को अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल मिलता है.
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा
इस पंक्ति का अर्थ है कि यह विश्व कर्म प्रधान है। कर्म का अर्थ है, कार्य करना। इस संसार में जो भी होता है, वह हमारे कर्मों के कारण होता है। अच्छे कर्मों के कारण हमें सुख मिलता है और बुरे कर्मों के कारण हमें दुख मिलता है।
जो जस करहि सो तस फल चाखा
इस पंक्ति का अर्थ है कि जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है। यदि हम अच्छे कर्म करते हैं, तो हमें अच्छे फल मिलेंगे। यदि हम बुरे कर्म करते हैं, तो हमें बुरे फल मिलेंगे।
इस पंक्ति से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने कर्मों का ध्यान रखना चाहिए। हमें अच्छे कर्म करने चाहिए, ताकि हमें सुख मिल सके।
इस पंक्ति को निम्नलिखित उदाहरणों से समझा जा सकता है:
- एक व्यक्ति जो दूसरों की मदद करता है, उसे लोग प्यार करते हैं और उसे समाज में सम्मान मिलता है।
- एक व्यक्ति जो दूसरों को नुकसान पहुँचाता है, उसे लोग घृणा करते हैं और उसे समाज में अपमान मिलता है।
इस प्रकार, हम देखते हैं कि हमारे कर्मों का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हमें अपने कर्मों का ध्यान रखना चाहिए और अच्छे कर्म करने चाहिए।
इस दोहे का एक अन्य अर्थ यह भी हो सकता है कि इस संसार में सभी प्रकार के पदार्थ उपलब्ध हैं, लेकिन कर्महीन व्यक्ति उनका उपयोग नहीं कर सकता। कर्महीन व्यक्ति इन पदार्थों का लाभ नहीं उठा सकता।
यह पंक्ति हमें यह भी सिखाती है कि हमें अपने भाग्य पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। हमें अपने कर्मों के माध्यम से अपना भाग्य बनाना चाहिए। यदि हम अच्छे कर्म करेंगे, तो हमारा भाग्य भी अच्छा होगा।
सकल पदारथ हैं जग मांही , कर्महीन नर पावत नाहीं
इस दोहे का अर्थ है कि इस संसार में सभी प्रकार के पदार्थ मौजूद हैं, लेकिन कर्महीन व्यक्ति उन्हें प्राप्त नहीं कर सकता।
कर्महीन नर पावत नाहीं
इस पंक्ति का अर्थ है कि जो व्यक्ति कर्म नहीं करता, वह कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता। कर्म का अर्थ है, कार्य करना। जीवन में सफल होने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं। यदि हम कर्म नहीं करेंगे, तो हम कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने जीवन में कर्म करना चाहिए। हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। यदि हम कर्म करेंगे, तो हम जीवन में सफल होंगे।
इस दोहे को निम्नलिखित उदाहरणों से समझा जा सकता है:
- एक विद्यार्थी जो कड़ी मेहनत करता है, वह अच्छे अंक प्राप्त करता है और अच्छी नौकरी पाता है।
- एक किसान जो मेहनत से खेती करता है, वह अच्छी फसल प्राप्त करता है और अच्छा मुनाफा कमाता है।
- एक व्यवसायी जो मेहनत से काम करता है, वह अपना व्यवसाय सफल बनाता है और धनवान होता है।
इस प्रकार, हम देखते हैं कि कर्महीन व्यक्ति कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता। हमें अपने जीवन में कर्म करके सफल होना चाहिए।
प्रभु ने संसार को कर्म प्रधान बना रखा है. सनातन धर्म में कर्म की प्रधानता कही गई है. हमने राम और कृष्ण को भगवान का दर्जा उनके सत्कर्मों और अथाह संघर्ष की वजह से ही दिया.

अमित एक अनुभवी आईटी अन्वेषक और सत्य के खोजी हैं। उन्होंने लिखने का माध्यम इसलिए चुना है ताकि आम लोगों तक अपने अनुभव साझा कर सकें।